एक दिन जब मैं सुबह सुबह ऑफिस जा रहा था, जाते जाते एफ एम रेडियो पर गाने चल रहे थे। एक आदमी ने फरमाइश के लिए फोन किया ।
जब उनसे आर जे ने पूछा "हेलो आप कौन बोल रहे हैं?"
"मैं पवन बोल रहाँ हूँ" श्रोता पवनने कहा|
"आप क्या करते हैं?" आर जे ने पूछा।
"मैं एक कंपनी में मैनेजर हूँ" पवन ने कहा।
" कहिएं आप कौनसा गाना सुनना पसंद करेंगे" आर जे ने पूछा।
"मैं हेरोइन का गाना पसंद करता हूँ, हलकट जवानी" पवन ने कहा।
"सुबह सुबह हलकट जवानी याँद आ रहीं है, यह गाना किसे डेडीकेट करते हैं?" आर जे ने पूछा।
"मेरें बच्चों के लियें" पवन ने कहा।
"क्या करते हैं आपके बच्चें?" आर जे ने पूछा।
"मेरा एक बेटा सातवी कक्षा में पढता हैं, और दुसरा दसवी कक्षा में पढता हैं" पवन ने कहा।
"चलो आपकी पसंद का गाना सुनते हैं, हलकट जवानी, अगर आपको भी कोई गाना सुनना हैं तो हमें फोन कीजिएगा," आर जे ने गाना चालू किया।
यह सब सुनने के बाद, मैं सोच में पड़ गया की, हमारें संस्कार भी इसी तरह हलकट होते जा रहें हैं। फ़िल्मी गाने के साथ साथ माँ बाप को पता नही चल रहां हैं की कौनसा गाना सुने या ना सुने। एक जमानेमें हलकट शब्द का प्रयोग सिर्फ गाली देने के लियें इस्तमाल किया जाता था। क्या समय के साथ साथ शब्दों की परिभाषा भी बदल रहीं हैं? जो भी हों हमें सोचना होगा और ऐसे शब्दों का इस्तमाल फ़िल्मी गानों में रोकना जरुरी हैं।