शनिवार, 23 मार्च 2013
मुलायम मोम के गोंद की माया...
मैं राजनीति बोल रहीं हूँ ! मैं जीवन के जिस बुरे पड़ाव से गुजर रहीं हूँ,यह सब आपके साथ बांटना चाहती हूँ। मैं आपको मेरे जीवन के कुछ उतार चढ़ाव के बारें में बताना चाहती हूँ। हमें 'ममता' की ममता पर बहुत ही विश्वास था, लेकिन क्या करे ? ' ममता' हमेंसे ममता किये बिना ही चली गयी। कुछ दिन हम 'करुणा' के दया से चल रहे थे, लेकिन अब तो हम पर किसी की भी करुणा नहीं आती। फिर हमने सोच लिया की, हम क्यूँ लोगों पर ममता दिखा दे, जो हमारें काम के नहीं रहें, अब हम किसी पे क्यूँ करुणा दिखाएँ की जो हमें करुणा नहीं दिखतें? इस लिए अपना हथियार दिखाना पडा।
चलों कुछ हो ना हो 'मुलायम' मोम का गोंद बना कर जोड़ चिपकाया गया हैं, वो भी कितने दिन तक चलेगा पता नहीं? क्यूँ की हमने एक गलती जरुर की हैं इस 'मुलायम' मोम को हमने फेविकोल समझ कर चिपका तो दिया है, लेकिन कब तक चलेगा पता नहीं। अब तो मौसम ठंडा हैं मुलायम मोम पिघलने ने के लिए गर्म मौसम का इन्तजार हैं। जब भी मौसम गर्म होने लगेगा हमने सीबीआई का बर्फ तयार रखा हैं, क्यूँ की इस मुलायम मोम को ठंडा रखें।
'माया' की बात कुछ और हैं उसे हम इस मायाजाल में इस तरह फंसाकर रखा हैं, जो की जब भी हमें लगता हैं की माया इस मायाजाल से बाहर जाने के कोशिश करेगी तो सीबीआई के जाल में फंस जायेगी। इस लियें हम सब पर दया करुणा और ममता के बिना ही मुलायम मोम की माया के रिश्तों में जुड़ चुकें हैं, हम भी देखतें हैं की हमें कौन जुदा करता हैं ?
अब मैं आपको यह बताना चाहती हूँ। जब तक हमारें पास सीबीआई का साथ हैं, हम कुछ भी कर सकतें हैं। क्या अन्ना जैसें लोग हमें पागल समझ रखा हैं, जो की हम हमारा हथियार किसी और को दे, नहीं !! कभी नहीं !! इसके बारें में सोचना भी नहीं।
आप लोग जरुर बताना, आपको कैसा लगा मुलायम मोम के गोंद की माया ...।
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