बहुत दिनों के बाद आज "नम्मा मेट्रो" में सफर करने को मिला ,जो बैंगलोर में दौड़ती हैं। जब मैं १९९६ में पहली बार बैंगलोर आया था तो तब ९ बजे के बाद पूरा बैंगलोर बंद हो जाता था। लेकिन जो बैंगलोर की प्रगति पथ पर हैं, उसके लिए सिर्फ आई टी इंडस्ट्री का बड़ा योगदान हैं। आज शहर रात भर जागता हैं, रात भर जीता हैं और यहाँ की रंगीन रातें जो किसी मेट्रो शहर से कम नहीं हैं ।
हमें इस्कॉन टेम्पल जाना था, इस लिए हमने "बायापनहल्ली" से "सैंडलवुड सोप फैक्ट्री "स्टेशन जाना था जो की इस्कॉन के नजदीक का रेलवे स्टेशन हैं। सिर्फ बीच में मैजेस्टिक में रूट बदलना होता हैं।
जाते समय मैं एक अनुभव महसूस किया जो की हिंदी अनाउसमेंट बंद हो चुका था, मुझे अब भी याद हैं की जब मैं पहली बार मेट्रो में सफर किया था तब तो हिंदी में अनाउसमेंट होता था जैसा की "अगला स्टेशन स्वामी विवेकानंद रोड हैं", मैं मन ही मन सोचा था की सिर्फ "अगला स्टेशन स्वामी विवेकानंद रोड " सिर्फ इतना ही काफी हैं।
अब तो हिंदी पूरी तरह बंद हो चुकी थी हर स्टेशन पर हिंदी के नेम प्लेट हटा दिए गए हैं, और कुछ जगह हिंदी नाम मिटा दिया गया हैं । क्या हम किसी भी भाषा की लिपि को मिटा सकते हैं, लेकिन मन से नहीं, समाज से नहीं या देश से नहीं। हिंदी तो देश की भाषा हैं हम सबको सीखना चाहियें, किसी भी भाषा का अनादर क्यों ?
हम जिस प्रान्त में रहते हैं वहाँ की भाषा का आना जरुरी हैं, लेकिन किसी अन्य भाषा को मिटाकर नहीं।
ಕರ್ನಾಟಕದಲ್ಲಿ ಕನ್ನಡವೇ ಆಢಳಿತ ಭಾಷೆ = कर्नाटकमें कन्नड़ ही अटूट भाषा।
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हमें इस्कॉन टेम्पल जाना था, इस लिए हमने "बायापनहल्ली" से "सैंडलवुड सोप फैक्ट्री "स्टेशन जाना था जो की इस्कॉन के नजदीक का रेलवे स्टेशन हैं। सिर्फ बीच में मैजेस्टिक में रूट बदलना होता हैं।
जाते समय मैं एक अनुभव महसूस किया जो की हिंदी अनाउसमेंट बंद हो चुका था, मुझे अब भी याद हैं की जब मैं पहली बार मेट्रो में सफर किया था तब तो हिंदी में अनाउसमेंट होता था जैसा की "अगला स्टेशन स्वामी विवेकानंद रोड हैं", मैं मन ही मन सोचा था की सिर्फ "अगला स्टेशन स्वामी विवेकानंद रोड " सिर्फ इतना ही काफी हैं।
अब तो हिंदी पूरी तरह बंद हो चुकी थी हर स्टेशन पर हिंदी के नेम प्लेट हटा दिए गए हैं, और कुछ जगह हिंदी नाम मिटा दिया गया हैं । क्या हम किसी भी भाषा की लिपि को मिटा सकते हैं, लेकिन मन से नहीं, समाज से नहीं या देश से नहीं। हिंदी तो देश की भाषा हैं हम सबको सीखना चाहियें, किसी भी भाषा का अनादर क्यों ?
हम जिस प्रान्त में रहते हैं वहाँ की भाषा का आना जरुरी हैं, लेकिन किसी अन्य भाषा को मिटाकर नहीं।
ಕರ್ನಾಟಕದಲ್ಲಿ ಕನ್ನಡವೇ ಆಢಳಿತ ಭಾಷೆ = कर्नाटकमें कन्नड़ ही अटूट भाषा।
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