शनिवार, 30 जून 2012
शुक्रवार, 29 जून 2012
लिफ्ट प्लीज़!
बात उन दिनों की हैं, जब मैं कॉलेज में था। मैं जब भी कॉलेज से शहर की और जाता था, तो किसीना किसीसे लिफ्ट मांगकर जाया करता था। हमारा कॉलेज शहर से 6 की मी दुरी पर था। एक दिन मैं हमेशा की तरह बस स्टॉप पे खड़ा था बस आकर चली गयी, लेकिन मैं किसी लिफ्ट वाले का इन्तजार करते वही पे खडा था। बस का किराया जो बचाना था। मैंने एक बाइक वाले से लिफ्ट मांगी, और उसने मुझे लिफ्ट दे दी, जब मैं लिफ्ट लेकर उतरने लगा तो उसने कहा चलो बीस रूपये निकालो ? मैंने कहा मेरे पास तो सिर्फ बीस रुपये हैं, इससे मैं पिक्चर देखना चाहता हूँ। चलो फिर दस रूपये दे दो और दस रूपये का फिल्म देख लेना। मैंने दस रुपयें निकाल के उस में हाथ में थमा दिए। बस फेयर के दो रूपये बचाने के चक्कर में दस रूपये गवां चुका था।
बहुत बार ऐसा होता हैं की हम जो सोचते हैं, वो होता नहीं। इसी के साथ मैं मेरा फिल्म देखने का प्रोग्राम रद्द करना पड़ा । क्यूँ की 10 रुपये में मैं फिल्म तो देख लेता तो, लेकिन लौटकर जा नहीं सकता था।
इस वाकये बाद मैं मेरी लिफ्ट मांगने की आदत बदल दी। और सिर्फ बस से ही शहर जाने लगा था। यह हादसा जब मैं मेरे लिफ्ट मांगने वालें दोस्तों को सुनाया तो उन्होंने ने भी लिफ्ट लेना बंद कर दिया। मैं जब यह वाकया मेरे दोस्तों को सूना रहा था तभी मेरे लिफ्ट लेनेवाले एक दोस्त ने कहा, मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। जब हम ने उसे पूछा पहले क्यूँ नहीं बताया तो उसने कहा, अगर मैंने पहलेही बता दिया होता तो आप लोग मेरा मजाक उड़ाते। बात सही थी क्यूँ की यह उसी का तर्क था, जो हमें एक नया सबक सिखने को मिला।
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