"नमस्कार अब हम थोड़ी ही देर में बेंगलुरु अंतरराष्ट्रीय हवाइ अड्डे पर उतरने वाले हैं, बाहर का तापमान २५ डिग्री सेलसियस हैं।" अब इस घोषणा में थोड़ा परिवर्तन होने वाला हैं। परिवर्तन के बाद घोषणा कुछ इस तरह होगी।
"नमस्कार अब हम थोड़ी ही देर में बेंगलुरु के केम्पे गौडा अंतरराष्ट्रीय हवाइ अड्डे पर उतरने वाले हैं, बाहर का तापमान २५ डिग्री सेलसियस हैं।"
क्यूँ की अब बेंगलुरु हवाई अड्डे का नाम बदलने वाला हैं जो की केम्पे गौडा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा।
अब हम "केम्पे गौडा" के बारे में थोड़ा जान लेते हैं केम्पे गौडा का पूरा नाम हरिया केम्पे गौडा उनका जन्म १५१० में हुआ था और मृत्यु १५६९ में।
केम्पे गौडा को बेंगलुरु नगर के निर्माता के रूप में जान जाता हैं। जो की उन्होंने किल्ले के बहार बड़ी सड़कें और बेंगलुरु शहर का आयोजन किया था।
चलो अब हम मानकर चलते हैं की, अब बेंगलुरु का हवाई अड्डा केम्पे गौडा के नाम से जाना जायेगा।
मैं तार बोल रहीं हूँ, एक ज़माना था जब लोग सिर्फ मेरे बल पर तत्काल सन्देश भेजकर लोग निश्चीत हुआ करते थे. क्यूँ की मेरे बराबरी का कोई तोड़ नहीं था. मैं सब की लियें, सभी काम के लियें, काम करती थी, अब मेरा जीना मुश्किल हो गया था. क्यूँ की अब लोगों को मेरी जरुरत नहीं रही. अब इस आधुनिक युग में जहाँ मोबाइल फोन से एस एम एस, इ-मेल यह सब पर मेरी अगली पीढ़ी ने कब्जा बनाया हैं, इस लियें अब मेरी उतनी जरूरत नहीं रही हैं. जाते जाते मैं यह कहना चाहती हूँ की, जो की मेरे काम का लेखा जोखा था जो मैं आपके साथ बाँटना चाहती हूँ. अगर किसी को शादी की बधाई, परीक्षा की सफलता या किसी की मृत्यु यह सब समाचार तुरंत पहुचा देती थी.
१६२ साल से मैं काम कर रहीं हूँ, लेकिन अब इस आधुनिक युग में मेरी धीमी चाल लोगों को पसंद नहीं हैं. आज ज़माना बहुत ही तेज़ हैं और मैं इस जमाने के साथ नहीं चल सकती इस लियें मैं इस काम से विदा ले रहीं हूँ. यह सब सोच कर मेरा दिल "तार" तार हो कर टूट गया हैं. मैं आज यानि १४ जुलाई २०१३ के बाद आपके सेवा से दूर जा रही हूँ, अब मैं सिर्फ एक इतिहास बनकर रह गयी हूँ. मेरे काम को देख कर कुछ लोग रो पड़े होंगे, कुछ लोग ख़ुशी से झूम गएँ होंगे, इसके लियें मैं सभीसे माफ़ी मंगाकर मेरी सेवा समाप्त करती हूँ.
आभार
आपकी तार…
मैं राजनीति बोल रहीं हूँ ! मैं जीवन के जिस बुरे पड़ाव से गुजर रहीं हूँ,यह सब आपके साथ बांटना चाहती हूँ। मैं आपको मेरे जीवन के कुछ उतार चढ़ाव के बारें में बताना चाहती हूँ। हमें 'ममता' की ममता पर बहुत ही विश्वास था, लेकिन क्या करे ? ' ममता' हमेंसे ममता किये बिना ही चली गयी। कुछ दिन हम 'करुणा' के दया से चल रहे थे, लेकिन अब तो हम पर किसी की भी करुणा नहीं आती। फिर हमने सोच लिया की, हम क्यूँ लोगों पर ममता दिखा दे, जो हमारें काम के नहीं रहें, अब हम किसी पे क्यूँ करुणा दिखाएँ की जो हमें करुणा नहीं दिखतें? इस लिए अपना हथियार दिखाना पडा।
चलों कुछ हो ना हो 'मुलायम' मोम का गोंद बना कर जोड़ चिपकाया गया हैं, वो भी कितने दिन तक चलेगा पता नहीं? क्यूँ की हमने एक गलती जरुर की हैं इस 'मुलायम' मोम को हमने फेविकोल समझ कर चिपका तो दिया है, लेकिन कब तक चलेगा पता नहीं। अब तो मौसम ठंडा हैं मुलायम मोम पिघलने ने के लिए गर्म मौसम का इन्तजार हैं। जब भी मौसम गर्म होने लगेगा हमने सीबीआई का बर्फ तयार रखा हैं, क्यूँ की इस मुलायम मोम को ठंडा रखें।
'माया' की बात कुछ और हैं उसे हम इस मायाजाल में इस तरह फंसाकर रखा हैं, जो की जब भी हमें लगता हैं की माया इस मायाजाल से बाहर जाने के कोशिश करेगी तो सीबीआई के जाल में फंस जायेगी। इस लियें हम सब पर दया करुणा और ममता के बिना ही मुलायम मोम की माया के रिश्तों में जुड़ चुकें हैं, हम भी देखतें हैं की हमें कौन जुदा करता हैं ?
अब मैं आपको यह बताना चाहती हूँ। जब तक हमारें पास सीबीआई का साथ हैं, हम कुछ भी कर सकतें हैं। क्या अन्ना जैसें लोग हमें पागल समझ रखा हैं, जो की हम हमारा हथियार किसी और को दे, नहीं !! कभी नहीं !! इसके बारें में सोचना भी नहीं।
आप लोग जरुर बताना, आपको कैसा लगा मुलायम मोम के गोंद की माया ...।
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