रविवार, 14 जुलाई 2013

"तार"तार हो कर टूट गयी …

 
         मैं तार बोल रहीं हूँ, एक ज़माना था जब लोग सिर्फ मेरे बल पर तत्काल सन्देश भेजकर लोग निश्चीत हुआ करते थे.   क्यूँ की मेरे बराबरी का कोई तोड़ नहीं था. मैं सब की लियें, सभी काम के लियें, काम करती थी, अब मेरा जीना मुश्किल हो गया था. क्यूँ की अब लोगों को मेरी जरुरत नहीं रही. अब इस आधुनिक युग में जहाँ  मोबाइल फोन से एस एम एस, इ-मेल यह सब पर मेरी अगली पीढ़ी ने कब्जा बनाया हैं, इस लियें अब मेरी उतनी जरूरत नहीं रही हैं. जाते जाते मैं यह कहना चाहती हूँ की, जो की मेरे काम का लेखा जोखा था जो मैं आपके साथ बाँटना चाहती हूँ. अगर किसी को शादी की बधाई, परीक्षा की सफलता या किसी की  मृत्यु यह सब समाचार तुरंत पहुचा देती थी.  


         १६२ साल  से मैं काम कर रहीं हूँ, लेकिन अब इस आधुनिक युग में मेरी धीमी चाल लोगों को पसंद नहीं हैं. आज ज़माना बहुत ही तेज़ हैं और मैं इस जमाने के साथ नहीं चल सकती इस लियें मैं इस काम से विदा ले रहीं हूँ. यह सब सोच कर मेरा दिल "तार" तार हो कर टूट गया हैं. मैं आज यानि १४ जुलाई २०१३ के बाद आपके सेवा से दूर जा रही हूँ, अब मैं सिर्फ एक इतिहास बनकर रह गयी हूँ. मेरे काम को देख कर कुछ लोग रो पड़े होंगे, कुछ लोग ख़ुशी से झूम गएँ होंगे, इसके लियें मैं सभीसे माफ़ी मंगाकर मेरी सेवा समाप्त करती हूँ. 

आभार
आपकी तार… 

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