१३ अगस्त को जब मैं क्रोमा शॉप के सामने खड़े होकर मेरी बेटीसे बातचीत कर ही रहा था. उतने में एक लड़का तिरंगा बेचते हुए मेरे पास आ गया, और कहने लगा साहब एक तिरंगा लेलो, मुझे २० रुपये का आइस क्रीम खाना हैं। मैं सोच में पड़ गया की लोग पहले पेट भरने के लिए काम करते थे, लेकिन अब आइस क्रीम खाने के लिए। इतने में वह लड़का फिरसे कहने लगा, "साहब ले लो ना यह तिरंगे का मानचित्र ले लो जो गाड़ी में रखने के काम आएगा।"
मैंने उसे कहा मैं तिरंगा तो मैं ले नहीं सकता लेकिन आइस क्रीम खिलाऊंगा, यह बोलकर जब मैंने आइस क्रीम वाले ट्राली पे गया तो वो बच्चा वो बच्चा ६० रुपये की आइस क्रीम डिमांड करने लगा। फिर मैंने उसे कहा वहाँ तो तुम बोल रहे थे की २० रूपये का आइस क्रीम चाहियें। मैंने उस ट्राली वालें से कहा भाई साहब २० रुपये वाली एक कैंडी आइस क्रीम देने को कहा। फिर उसने उसे बिस रूपये वाले कैंडी आइस क्रीम दे दी। मैंने फोन पे से २० रूपये का पेमेंट करवा दिया।
मैंने मासूम बच्चा समझकर उसके पास से तिरंगा खरीदे बिना ही आइस क्रीम खिला दी। क्यों की जब मैं अगर तिरंगा खरीदने के बाद अगर तिरंगा गलती से भी यहाँ वहाँ गिरेगा और तिरंगे का सन्मान नहीं रहेगा।
देश की हालात इस तरह हैं की मासूम बच्चों को तिरंगा बेचना पड़ता हैं। हमें वो दिन लाना हैं किसी भी मासूम बच्चे को कुछ भी बेचने का या कोई धंदा या काम ना करना पड़े। यही होगा देश और तिरंगे का सन्मान ।
(इमेज गूगल से.... )
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