शनिवार, 14 जुलाई 2012

नवाब दिल...





जब मैं मुंबई से बंगलोर शिफ्ट हुआ था, तब मैंने  नवाब बिल्डिंग  में  वन बीएचके का मकान  किरायें पर लिया था। हमारे मकान मालिक का नाम नवाब था। जब मैं  घर में शिफ्ट हुआ तो कुछ दिन बहुत ही अच्छा लगा। कुछ दिनों  के बाद नवाब साहब हर दो तीन दिन में एक बार सौ या पचास रु  मांगा करते थे । हमारे नवाब साहब की अदा ऐसी थी  की, उधर सूरज ढला और  नवाब का  काम शुरू, साथ में एक दारू की  बोतल और गणेश बीडी का बण्डल लेकर उन्ही के घर के हॉल में बैठ जाते थे। कभी कभी जब मैं अपने घर की तरफ जा रहा होता तो मुझे बुलकर बीडी पिने का ऑफर जरुर करते। मैं भी कभी कभी  गाँव की यादों में गणेश बीडी का चुसका लेता था। हमारे नवाब साहब जब भी बोतल खोल बैठ जाते, तो उनकी बीवी से बहुत जोर जोर से बहस  होती थी। कभी यह बहस  झगड़े में तब्दील हो जाती,और मामला हाथापाई  पर आ जाता। एक दिन सुबह नवाब साहब बीडी का चुसका लेते हुए हॉल बैठे हुए थे।माथे  पर चोट का  निशाँ था। जब मैंने पूछा तो उन्होंने कहा, आपको तो मालूम ही हैं, की यह मेरा जोरू के साथ रोज का झगड़ा हैं, उसीमें कुछ लगा होगा। नवाब  साहब का स्टाइल यही था की  किसी ना किसी से उधार मांगकर  हो या कुछ भी हो लेकिन पीना जरुरी था।  उधार नहीं देता  तो खैर नहीं,  घर खाली  करने की धमकी देना नहीं भूलते।


        शादी के बाद मैं घर बदलने का  सोच ही रहा था। एक दिन सुबह नवाब साहब से कह दिया। मैं घर खाली करने वाला हूँ। फिर उसने कहा, अडवांस की जमा राशी  दुसरा किरायदार आने के बाद ही दे दूंगा। मैंने कहा मुझे अभी चाहियें क्यूँ की मुझे दुसरे घर में भी अडवांस देना हैं। लेकीन  उसने कहा नहीं दूंगा। मैंने  घर बदलने का  फैसला ले चुका था। अब अडवांस की राशी के लिए रुकना संभव नहीं था। 

          कुछ ही दिनों में मैंने  घर चेंज किया। एक महीना बीत चुका था लेकिन  नवाब साहब ने अडवांस के रूपये लौटाए नहीं यह सोचते सोचते घर में बैठा ही था की डोर बेल बजी। जैसे ही मैंने  दरवाजा खोला और देखा तो द्वार पर नवाब साहब थे।जैसा की सैतान का  नाम लिया और सैतान हाजिर। मैं मन ही मन सोचता था की साला  बेवडा यहाँ भी आ गया  भिक मांगने के लियें। मैने उसे घर में बुलाया और पूछा कैसे  क्या आना हुआ ? और आपको इस घर का पता कैसा चला? नवाब साहबने  मुस्कुराते  हुए कहा की  पचास रू मिलते तो अच्छा होता। मैं थोड़ा परेशान हुआ तो उसने कहा, परेशां होने की जरुरत नहीं, मैं  अडवांस की राशी लौटाने  आया हूँ। मुझे पल भर झूट ही लगा फिर उसने अपने जेब में से रु निकलकर मेरे हाथ में थमाते हुए कहा गिन लो। 

        कभी कभी हम कुछ लोगों को समज ही  नहीं पाते क्यूँ की जो जैसे दिखतें हैं वैसें होते नहीं। सच में वो दिल का नवाब था।  क्यूँकी बहुतसे  लोग ऐसे होते हैं की, जरुरत पड़ने  पर उधार तो लेते हैं लेकिन चुकाना भूल  जाते हैं।

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