शनिवार, 11 अगस्त 2012

चीन का दबदबा

   
      चीन का दबदबा पुरे दुनिया में छा गया हैं, इसका प्रमाण हैं लन्दन ओलंपिक्स  की मेडल टैली। क्या भारत इस मकाम तक पहुँच पायेगा? आज चीन का मुकाबला भारत से नहीं बल्कि सीधा अमेरिका से हैं। चीन दुनिया को बताना चाहता हैं की हम किसीसे कम नहीं।

      जब 1952 के सम्मर ओलम्पिक्स फिनलैंड के हेलसिंकी में आयोजित, उसमें चीन को एक भी मेडल नहीं मिला था। उस बार अमेरिका 40 गोल्ड, 19 सिल्वर और 17 ब्रान्झ, कुल 76 पदाकोंके साथ नंबर एक पर था। रूस 22 गोल्ड के साथ दुसरे नंबर पर था। और भारत एक गोल्ड और एक  ब्रान्झ के साथ 26 वे स्थान था।

     1960 का ओलम्पिक इटली के रोम खेला गया था। रूस पहले स्थान तो अमेरिका दुसरे स्थान पर था। भारत और चीन एक एक सिल्वर के साथ  32 वे स्थान पर थे।

    1964 के ओलम्पिक में भारत एक गोल्ड के साथ 24 वे स्थान पर था। इस बार चीन के ताइवान टीम को खाली  हाथ लौटना पडा। उसके बाद 1968 में भारत और  ताइवान चीन को एक एक ब्रान्झ मेडल से लौटना पडा। 1976 में चीन के ताइवान और भारत को खाली  हाथ लौटना पड़ा।

     जब 1984 में चीन 15 गोल्ड के साथ चौथे स्थान पर आ गया। भारत कोई भी मेडल नहीं ले सका।इसके बाद चीन कहता गया की रोक सके तो रोक लेना।

          अब दुनिया में चीन अमेरिका को पछाड़ने की तैयारी  में लगा हैं। क्या भारत  यह स्थान हासिल कर पायेगा ? इसके लियें  एक लम्बी और पूर्व नियोजित  योजना की जरुरत हैं, जो चीन ने अपनाई हैं। हमारी सरकार तो सिर्फ भ्र्ष्ठाचार की तरफ बढ़ रही हैं। ऐसें में क्या देश में खेल का विकास हो पायेगा? क्या चीन के इस चौतरफा विकास को हम चुनौती दे सकते हैं?  क्या हमारी आनेवाली पीढ़ी गर्व से कह सकेगी 'मेरा भारत महान"। अब वक्त आ गया हैं की हमें कुछ करना होगा और इस देशद्रोहियोंको सत्ता से हटाना होगा।  कब तक सहेंगे हम, आखिर कब तक?


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें