रविवार, 26 अगस्त 2012

सरकारी सोशल मीडिया

   
     
     जब अन्ना का पहला सफल आन्दोलन हुआ था, इसमें सोशल नेटवर्क का बहुत ही बड़ा योगदान रहा। सरकार तभी से सोशल मीडिया के तरफ कटाक्ष नज़र से देखने लगी थी। संचार मंत्री ने उस वक्त यह भी कह डाला था, की सोशल मीडिया को बंद कर देना चाहिय। समय उचित नहीं था, इस लिय सरकार ने एक प्लानिंग के तहत काम करना शुरू किया। पूरी सोशल नेटवर्क पाबंदी लाने से बेहतर यह होगा की जो जरुरी नहीं उन्ही लोगों के खाते बंद करना ठीक रहेगा, इससे सांप भी मरें लेकिन लाठी भी ना टूटे।

                   पहली बात तो यह हैं की सोशल मीडिया में कुछ लोगों पर पाबंदी देशहित में तो होही नहीं सकती, लेकिन पार्टी के हित में भी नहीं होगी, क्यूंकि इस मीडिया में जितने भी लोग हैं, उसमें ज्यादा लोग तो इस सरकार के बारे में उलटा सीधा कहने वालें ही हैं। इसका खामियाजा पार्टी  को  उठाना पडेगा,क्यूंकि जिन लोगों के खाते बंद कर दियें, इससे सरकारी पार्टी को  कुछ भी फायदा नहीं होगा, क्यूँ की जिन लोगों के खाते बंद होने वाले हैं, या हो गए हैं, वो तो सरकार के पक्ष कभी नहीं थे, या नहीं रहेंगे। लेकीन  इससे आम लोगों में एक सन्देश जरुर जाएगा की सरकार जो कुछ कर रही हैं, वो ठीक नहीं। लेकिन आम आदमी की परिभाषा क्या है? क्या आम आदमी वही हैं जो की सोशल मीडिया से जुडा हैं।
   
           सरकार असम का हिंसा के आड़ में सोशल मीडिया के कुछ लोगों के खाते बंद करके, मुसलमान वोटों को अपने तरफ खींचने की एक नयी चाल तो नहीं हैं? लेकिन इससे एक बात तो साबित हो गयी हैं की सरकार असम के आड़ में आरएसएस और कुछ मीडिया कर्मी  के ट्वीटर खाते बंद कर चुकी हैं इसका सीधा मतलब  यह हैं, सरकार को असम हिंसा से कुछ भी लेना देना हैं। क्या यह 2014 के चुनाव के लिय वोटबैंक की रणनीति तो नहीं हैं?

         लेकिन इन सब बातोंसे यह लगता हैं की सरकार अपने पॉवर का इस्तमाल लोकशाही के लिय नहीं, बल्की हुकुमशाही के लिय कर रही हैं, जो की देशहित में नहीं होगा, देशहित की बात तो छोड़ दो, उसके बारें में सोचता कौन हैं? लेकिन यह पार्टी के हितमें भी नहीं हैं। क्या सोशल मीडिया भी सरकारी सोशल मीडिया बनेगा?  जैसा की सरकारी टीवी मीडिया, सरकारी स्कूल, सरकारी अस्पताल आदि।

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