आजादी का मतलब एक दिन की छुट्टी और राष्ट्र ध्वज फहराना यहाँ तक सिमित नहीं हैं। उसके साथ साथ आजादी का जश्न यानि राष्ट्रपति का सन्देश, जो मुफ्त में देख सकते हैं दूरदर्शन पर।
राष्ट्रपती का देश के नाम पहला सन्देश कुछ ऐसा लगता था की देश के प्रति कम और उन आन्दोलन करने वाले लोगों को दबाने के प्रति ज्यादा और भ्रष्ट नेताओं को संविधान के आड़ में सुरक्षा देना यही दर्शाता हैं। इससे ज्यादा उम्मीद हमारे राष्ट्रपति से करना उचित नहीं होगा, क्यूंकि वो खुद किसी के अहसान तलें दबे हुए हैं। इसी सन्देश में एक आदेश छुपा हैं। आज़ादी के सन्देश के लिये भी आजादी नहीं हैं।
इसी सन्देश से निकले कुछ सवाल, जवाब कौन देगा?
- क्या अंग्रेज भी हमारें शहीदों के प्रति यही ख़याल तो नहीं रखते थे? अब जो लोग सरकार के विरोध में आन्दोलन करतें हैं।
- अगर ऐसा हैं तो क्या फर्क हैं, उन शहीदों में और आज के आन्दोलन करने वाले लोगों में? वो भी तो यही सोच कर आन्दोलन करते थे, की देश आज़ाद हो। क्या भ्रष्टाचार से आज़ादी चाहना हमारा अधिकार नहीं हैं ?
- अगर लोग संविधान पर ऊँगली उठाते हैं तो, इसके लिय कौन जिम्मेदार हैं? क्या आन्दोलन करना या सरकार के खिलाप आवाज़ उठाना लोकतंत्र नहीं हैं?
- क्या भ्रष्ट नेता को सजा मिल सकेगी? कब और कैसे? अगर मिलती हैं तो अब भ्रष्ट नेता जेल में क्यूँ नहीं हैं?
- क्या वजह हैं की हमारें देश में नेता शब्द का अर्थ बदल गया हैं? शुभाष चन्द्र बोस भी नेताजी के नाम से जाने जाते हैं , लेकिन उनके बारें में लोगों के मन में उतना प्रेम और सन्मान क्यूँ हैं?
- क्या आप देश के उच्चतम पद का उपयोग करके इस भ्रष्ट नेताओं को सजा देने का प्रयास करेंगे ? क्या आप भ्रष्टाचार निर्मूलन के लियें कुछ ठोस कदम उठाएंगे ?
- आज देश के हालात के लियें कौन जिम्मेदार हैं? क्या संसद में बैठे लोग जिम्मेदार नहीं हैं?
- अगर सरकार चाहें तो सब कुछ संभव हैं। अब सवाल यह हैं की, सरकार लोगों को ऊँगली उठाने का मौक़ा क्यूँ देती हैं?
मेरे वतन के लोगो, देखो और जागो, आँख में भर लो पानी, लेकिन रोना नहीं, क्यूँ की कुछ दिन बाद यह आसूं भी सुक जायेंगे। चाहे कुछ भी हो नेता और संसद के बारें में कुछ भी कहना नहीं, क्यूँ की हम लोग ही उस नेता को देश संभालने के लिए भेजा हैं। अब आप इसे सन्देश समझो या आदेश यह आप पर निर्भर करता हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें